आँखों में बैठी है थकन
सपने भी तेरे हैं पले
पलकें झुकीं हैं बोझ से
पर नींद क्यूँ है लापता
जाने भटकता हूँ कहाँ
इस ओर से उस ओर तक
अब दूर इतनी आ गया
कि ढूँढू खुदका ही पता
अब क्या करूँ कुछ तो बता
दे दे कोई तू आसरा
तू साथ चलता है तो चल
मिल जायेगा कोई रास्ता।
सपने भी तेरे हैं पले
पलकें झुकीं हैं बोझ से
पर नींद क्यूँ है लापता
जाने भटकता हूँ कहाँ
इस ओर से उस ओर तक
अब दूर इतनी आ गया
कि ढूँढू खुदका ही पता
अब क्या करूँ कुछ तो बता
दे दे कोई तू आसरा
तू साथ चलता है तो चल
मिल जायेगा कोई रास्ता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें