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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

नींद क्यूँ है लापता

आँखों में बैठी है थकन
सपने भी तेरे हैं पले
पलकें झुकीं हैं बोझ से
पर नींद क्यूँ है लापता

जाने भटकता हूँ कहाँ
इस ओर से उस ओर तक
अब दूर इतनी आ गया
कि ढूँढू खुदका ही पता

अब क्या करूँ कुछ तो बता
दे दे कोई तू आसरा
तू साथ चलता है तो चल
मिल जायेगा कोई रास्ता। 

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