Blogoday


CG Blog

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

क्या कहने!

मोहब्बत में कही बातों के क्या कहने

बाद इन्तेज़ार के मुलाक़ातों के क्या कहने

शहर हो और जुदा होना पड़े फिर से
इस डर से आँखों में कटी रातों के क्या कहने

टकराती गर्म साँसों की तासिर से
मोम से पिघलते जज्बातों के क्या कहने

वो तेरी जाने कि ज़िद और मेरे मनाने की हद
तब बेवक़्त आतीं उन बरसातों के क्या कहने

अब है दर्द, गम, तन्हाई, रुसवाई
चाहत में मिले इन सौगातों के क्या कहने।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें