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सोमवार, 9 दिसंबर 2013

चाहत का शोर

नजरों से नजरें मिलीं
ज़माने भर की बातें हो गयीं
यूँ तो पहली बार मिले
लगा कई मुलाकातें हो गयीं

चैन जाने गया किधर
नींदें भी गायब हो गयीं
दिन तो दूभर हो ही गया
लंबी ये रातें हो गयीं

सांसों में बहने लगे हो
जीवन का संगीत हो
यूँ कहो, तुम चाह मेरे
तुम ही मेरे मनमीत हो

जो लहरें इस ओर उठी हैं
वैसी ही उस ओर हैं क्या ?
अपनी धड़कनों को सुनकर देखो
चाहत का कोई शोर है क्या ?

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