Blogoday


CG Blog

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

प्रण

प्रण तेरा जरुरी है

बड़ी लम्बी वो दूरी है
विजयपथ है बहुत दुर्गम
शिलाएं तोड़ता तू चल

है तो रहने दे जीवन को एकांकी
नदी के विरुद्ध तैरना ही है तैराकी
अटल तू है, अडिग तू है
धाराएं मोड़ता तू चल

रास्तों से बात तू कर ले
दोस्ती कर तू हवाओं से
कीमत पहचान ठोकरों की
रिश्ते जोड़ता तू चल

सहज हो जायेगा जल्दी
उपाय एक बस कर ले
बीती बातें, बीते किस्से
पीछे छोड़ता तू चल

विजयपथ है बहुत दुर्गम
शिलाएं तोड़ता तू चल


सोमवार, 16 दिसंबर 2013

क्या कहने!

मोहब्बत में कही बातों के क्या कहने

बाद इन्तेज़ार के मुलाक़ातों के क्या कहने

शहर हो और जुदा होना पड़े फिर से
इस डर से आँखों में कटी रातों के क्या कहने

टकराती गर्म साँसों की तासिर से
मोम से पिघलते जज्बातों के क्या कहने

वो तेरी जाने कि ज़िद और मेरे मनाने की हद
तब बेवक़्त आतीं उन बरसातों के क्या कहने

अब है दर्द, गम, तन्हाई, रुसवाई
चाहत में मिले इन सौगातों के क्या कहने।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

चाहत का ज़माना

आँखों में हैं बहते सपने
नींदों का उड़ जाना इस तरह

जाड़े की  सर्द हवाओं का
दिल को छू जाना इस तरह

यादों से मन को भिगोने
बेमौसम बारिश का आना इस तरह

भोर की किरणों के संग ही
चिड़ियों का गाना इस तरह

धड़कनें भी लय में आयीं
साँसों का आना जाना इस तरह

यूँ लगता है मानो आया
चाहत का ज़माना इस तरह।

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

चाहत का शोर

नजरों से नजरें मिलीं
ज़माने भर की बातें हो गयीं
यूँ तो पहली बार मिले
लगा कई मुलाकातें हो गयीं

चैन जाने गया किधर
नींदें भी गायब हो गयीं
दिन तो दूभर हो ही गया
लंबी ये रातें हो गयीं

सांसों में बहने लगे हो
जीवन का संगीत हो
यूँ कहो, तुम चाह मेरे
तुम ही मेरे मनमीत हो

जो लहरें इस ओर उठी हैं
वैसी ही उस ओर हैं क्या ?
अपनी धड़कनों को सुनकर देखो
चाहत का कोई शोर है क्या ?