जो तुम रहगुज़र होगे
तो राहें मैं बनाऊंगाबता दो बस तुम इतना
कहाँ तक साथ आओगे ?
इक हाँ काफी है
ये पुतला जी उठेगा अब
नयी रूह भी होगी
नए ज़ज्बात पाओगे
लड़ाई ज़िन्दगी से है
खफ़ा तुम क्यूँ होते हो ?
अदद इक रात है बाकी
कल नए हालात पाओगे
पूछा था कभी तुझसे
की चाहा है मुझे कितना
मुद्दा अब नहीं है वो
नए सवालात पाओगे
तुम्ही थे नींद भी मेरी
तुम्ही थे ख्वाब भी मेरे
भरोसा अब तलक ये है
तुम ये सौगात लाओगे
गए हो दूर जो मुझसे
मैं गिला करता नहीं कोई
किया था एक वादा ये
कि इक दिन लौट आओगे।
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी …
जवाब देंहटाएंवर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .
संजय जी सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्। अब ये परेशानी नहीं होगी ..
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