सूखे पत्तों के ढेर में तब्दील हुए ख्वाब मेरे
जला दूँ या सहेज लूँ बोरे में भर करशायद काम आ जाएं किसी नम रात में
अतीत की रोटियाँ सेकने के लिए
या कभी जला कर इन्हें
ठंडे पड़े रिश्तों में नई गर्मी भर सकूँ
या उड़ा दूँ हवा में की ये बिखर जाएँ हर ओर
जैसे अभी अभी टूटकर कोई ख्वाब बिखरा हो
या पड़े रहने दूँ इन्हें जस के तस
ताकि नियति जो चाहे कर सके इनके साथ
जैसा की वो आज तक करती आई है
आखिर क्या करूँ -
जला दूं या सहेज लूँ बोरे में भरकर ?
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