उस पेड़ को देखो
मुरझा से गए हैं उसके पत्ते सारे
टूट जायेंगे कुछ दिनों में
एक-एक कर टूटते मेरे सपनो की तरह
उग आयेंगे नए पत्ते फिर से
ये उनकी प्रकृति है
मैं सपने देखता रहूँगा
ये मेरी प्रकृति है
वहां देखो एक नदी है
कुछ पोधे भी हैं उसके किनारों पर
सूख जाएगी वो नदी
हर साल सूख जाती है
पर उदास नहीं है नदी
उदास नहीं हैं पोधे क्योंकि
फिर से जी उठती है नदी
और जी उठते हैं पोधे भी
बरसात के आने पर
ये होसला देते हैं मुझे, और
मैं सपने देखता रहता हूँ
ये आसरा देते हैं मुझे, और
मैं सपने देखता रहता हूँ
तोड़ते-तोड़ते मेरे सपनों को
थक जायेंगे जब हाथ कुदरत के
सच हो जायेंगे मेरे बाकि सपने
इसलिए मैं सपने देखता रहता हूँ
ये मेरी प्रकृति है.
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