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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

तब थाम लेना तुम हाथ मेरा

तब थाम लेना तुम हाथ मेरा
जो चलते हुए कदम लडखडाये

जब मुश्किल लगे उस पार जाना
दुखों के भंवर से जब हो पार पाना
 जीवन की नौका अगर डगमगाए

तब थाम लेना तुम हाथ मेरा
जो चलते हुए कदम लडखडाये

खड़ा हूँ यहाँ मैं हमेशा की तरह ही
तुम्हारे लिए अपनी बाहें फैलाये
तुम्हारी बगल में चुपचाप, लेकिन
हर आहट पर ध्यान लगाये

तब थाम लेना तुम हाथ मेरा
जो चलते हुए कदम लडखडाये
    
 

शुक्रवार, 3 जून 2011

Patjhad Niras Nahin Hai

Patjhad niras nahin hai
Patjhar bekar nahin hai
basant bhi aata hai
patjhad hi to har bar nahin hai

patjhad kehta hai-
main pardarshi hoon
tum bhi pardarshi kahlao
jo tumhare andar hai
wahi bahar bhi dikhe
aisi chhavi banao

patjhad kehta hai-
taiyarian karo swagat ki
basant aanewala hai
main ja raha hoon
mera ant aanewala hai
hone wali hai subah
dekho naya kal aanewala hai

मंगलवार, 31 मई 2011

मुझे शांत रहने दो

रोकता हूँ भावनाओं को

जो पल-पल उठती हैं मन में
और रोकता हूँ मन को 
जो भटकता है भावनाओं के वन में 

-शांत हो जाओ तुम सब
मुझे भी शांत रहने दो 
एकांत में ही मैं खुश था 
मन में एकांत रहने दो 

आखिर क्यों उठती हो
मेरे अन्दर तूफान की तरह?
और बहार निकलकर क्यों आना 
चाहती हो इस दुनिया में?
जबकि तुम्हें पता है-
क़द्र यहाँ मिल नहीं सकता
कोई महफ़िल मिल नहीं सकती 
कोई समझने वाला मिल नहीं सकता
कोई मंजिल मिल नहीं सकती

महत्व चाहती हो जितना 
काबिल ही नहीं तुम उसकी
ये बात भी तो तुम मानती नहीं 
लोग बातें करते हैं अपने मतलब की 
तुम्हें अनदेखा करेंगे 
ये बात भी तुम जानती नहीं

क्यों लगता है तुम्हें 
समझा पोगी उन्हें अपनी बात 
जो तुम्हें सुनना भी नहीं चाहते 
क्यों चलना चाहती हो उनके साथ 
जो तुम्हारे आस-पास भी चलना नहीं चाहते 

बाहर जब तुम आओगी
ज़माने की ठोकरें खाओगी 
कभी दुनियां हसेगी तुमपर
कभी तुम अपने होने पर पछताओगी 

अब मान भी लो मेरी बात
शांत हो जाओ तुम सब
और मुझे भी शांत रहने दो.

मेरी प्रकृति

उस पेड़ को देखो

मुरझा से गए हैं उसके पत्ते सारे
टूट जायेंगे कुछ दिनों में
एक-एक कर टूटते मेरे सपनो की तरह 

उग आयेंगे नए पत्ते फिर से
ये उनकी प्रकृति है
मैं सपने देखता रहूँगा
ये मेरी प्रकृति है

वहां देखो एक नदी है
कुछ पोधे भी हैं उसके किनारों पर
सूख जाएगी वो नदी
हर साल सूख जाती है
पर उदास नहीं है नदी
उदास नहीं हैं पोधे क्योंकि
फिर से जी उठती है नदी
और जी उठते हैं पोधे भी
बरसात के आने पर

ये होसला देते हैं मुझे, और
मैं सपने देखता रहता हूँ
ये आसरा देते हैं मुझे, और
मैं सपने देखता रहता हूँ
तोड़ते-तोड़ते मेरे सपनों को
थक जायेंगे जब हाथ कुदरत के
सच हो जायेंगे मेरे बाकि सपने
इसलिए मैं सपने देखता रहता हूँ

ये मेरी प्रकृति है.